सोमवार, 21 दिसंबर 2009

तेजी से फल-फूल रही है नकली किताबों की दुनिया

रजनीश राज

प्रदेश में नकली किताबों की दुनिया तेजी से फल-फूल रही है। इन पाइरेटेड किताबों के कारण प्रकाशन व्यवसाय को हर साल काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। नकली किताबों से बचने के स्वत: उपाय भी प्रकाशकों ने शुरू कर दिए हैं। इस क्रम में कुछ प्रकाशकों द्वारा किताबों पर होलोग्राम भी लगाया जाने लगा है। पिछले दिनों आगरा में छापा मार कर नकली किताबों के धंधे का भंडाफोड़ किया गया। लखनऊ में अमीनाबाद में भी पाइरेटेड किताबों की सूचना मिली थी लेकिन छापे की भनक लगते रही यहां किताबों को गायब कर दिया गया।
एक मोटे अनुमान के अनुसार इस समय देश में 15 हजार से अधिक मुख्य प्रकाशक हैं। इन प्रकाशकों को हर वर्ष करोड़ों रुपये की हानि नकली किताबों के कारण उठानी पड़ रही हैं। मार्केट में बिकने वाली महत्वपूर्ण किताबों की नकल पर पाइरेटेड किताबें तैयार की जा रही हैं। शिक्षा संबंधी किताबें मुख्य रूप से नकली किताबों की दुनिया में छायी हैं। पिछले दिनों आगरा में न्यू एज इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड की नकली किताबों को पकड़ा गया। 'फाउंडेशन ऑफ इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजीÓ व 'कंट्रोलर स्टिम ऑफ इंजीनियरिंगÓ शीर्षक से इस प्रकाशन द्वारा बिकने वाली महत्वर्पूण किताबें है। इनकी नकली किताबों को यहां पकड़ा गया। न्यू एज के क्षेत्रीय प्रबंधक एल.एन. मिश्रा का कहना है कि नकली किताबों का धंधा पूरे प्रदेश में हो रहा है। लखनऊ में किताबों के मुख्य बाजार अमीनाबाद में भी पाइरेटेड किताबों की सूचना मिली थी। कोई कार्रवाई होती, इससे पूर्व इन किताबों को गायब कर दिया गया।
दरअसल नकली किताबों की पहचान आसान नहीं है। बाजार में धीरे-धीरे नकली किताबों को उतारा जाता है। इन किताबों में एक ओर महत्वपूर्ण तथ्यों को गायब कर दिया जाता है तो दूसरी ओर पेपर भी घटिया प्रयोग होता है। असली किताबों से कम मूल्य पर नकली किताबों को बेचा जाता है जिससे पाठक आसानी से नकली किताबों की ओर आकर्षित हो जाते हैं।
नकली किताबों के प्रति जागरूकता के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तहत बुक प्रोमोशन कॉपीराइट डिवीजन है। इसके द्वारा हर किताब को आईएसबीएन (इंटरनेशनल स्टैडर्स बुक नंबर) दिया जाता है। इस नंबर से उस किताब की पहचान आसान हो जाती है। देखने में आ रहा है कि इस नंबर को प्राप्त करने के लिए भी प्रकाशक उदासीन रहते हैं। इधर, कुछ प्रकाशकों ने नकली किताबों से बचने के लिए प्रत्येक किताब पर होलोग्राम लगाना भी शुरू कर दिया है। नकली किताबों के कारण प्रकाशक के साथ ही लेखकों को भी नुकसान उठाना पड़ता है। पाइरेटेड किताबों से उनकी रायल्टी प्रभावित होती है। पाइरेटेड किताबों को लेकर पिछले साल के पुस्तक मेले में खासी चर्चा भी हुई थी। पुस्तकालय संघ भी नकली किताबों के प्रति जागरूकता के लिए प्रयासरत है। फिर भी 6 माह से तीन साल तक कैद व 50 हजार से 2 लाख तक के जुर्माना के बाद भी नकली किताबों के धंधे में कोई कमी नहीं आयी है। कुछ एक घटनाओं के छोड़ दिया जाए तो किसी प्रकाशक के पास नकली किताबों को पकडऩे संबंधी आंकड़े नहीं हैं।
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तेजी से फल-फूल रही है नकली किताबों की दुनिया

रजनीश राज

प्रदेश में नकली किताबों की दुनिया तेजी से फल-फूल रही है। इन पाइरेटेड किताबों के कारण प्रकाशन व्यवसाय को हर साल काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। नकली किताबों से बचने के स्वत: उपाय भी प्रकाशकों ने शुरू कर दिए हैं। इस क्रम में कुछ प्रकाशकों द्वारा किताबों पर होलोग्राम भी लगाया जाने लगा है। पिछले दिनों आगरा में छापा मार कर नकली किताबों के धंधे का भंडाफोड़ किया गया। लखनऊ में अमीनाबाद में भी पाइरेटेड किताबों की सूचना मिली थी लेकिन छापे की भनक लगते रही यहां किताबों को गायब कर दिया गया।
एक मोटे अनुमान के अनुसार इस समय देश में 15 हजार से अधिक मुख्य प्रकाशक हैं। इन प्रकाशकों को हर वर्ष करोड़ों रुपये की हानि नकली किताबों के कारण उठानी पड़ रही हैं। मार्केट में बिकने वाली महत्वपूर्ण किताबों की नकल पर पाइरेटेड किताबें तैयार की जा रही हैं। शिक्षा संबंधी किताबें मुख्य रूप से नकली किताबों की दुनिया में छायी हैं। पिछले दिनों आगरा में न्यू एज इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड की नकली किताबों को पकड़ा गया। 'फाउंडेशन ऑफ इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजीÓ व 'कंट्रोलर स्टिम ऑफ इंजीनियरिंगÓ शीर्षक से इस प्रकाशन द्वारा बिकने वाली महत्वर्पूण किताबें है। इनकी नकली किताबों को यहां पकड़ा गया। न्यू एज के क्षेत्रीय प्रबंधक एल.एन. मिश्रा का कहना है कि नकली किताबों का धंधा पूरे प्रदेश में हो रहा है। लखनऊ में किताबों के मुख्य बाजार अमीनाबाद में भी पाइरेटेड किताबों की सूचना मिली थी। कोई कार्रवाई होती, इससे पूर्व इन किताबों को गायब कर दिया गया।
दरअसल नकली किताबों की पहचान आसान नहीं है। बाजार में धीरे-धीरे नकली किताबों को उतारा जाता है। इन किताबों में एक ओर महत्वपूर्ण तथ्यों को गायब कर दिया जाता है तो दूसरी ओर पेपर भी घटिया प्रयोग होता है। असली किताबों से कम मूल्य पर नकली किताबों को बेचा जाता है जिससे पाठक आसानी से नकली किताबों की ओर आकर्षित हो जाते हैं।
नकली किताबों के प्रति जागरूकता के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तहत बुक प्रोमोशन कॉपीराइट डिवीजन है। इसके द्वारा हर किताब को आईएसबीएन (इंटरनेशनल स्टैडर्स बुक नंबर) दिया जाता है। इस नंबर से उस किताब की पहचान आसान हो जाती है। देखने में आ रहा है कि इस नंबर को प्राप्त करने के लिए भी प्रकाशक उदासीन रहते हैं। इधर, कुछ प्रकाशकों ने नकली किताबों से बचने के लिए प्रत्येक किताब पर होलोग्राम लगाना भी शुरू कर दिया है। नकली किताबों के कारण प्रकाशक के साथ ही लेखकों को भी नुकसान उठाना पड़ता है। पाइरेटेड किताबों से उनकी रायल्टी प्रभावित होती है। पाइरेटेड किताबों को लेकर पिछले साल के पुस्तक मेले में खासी चर्चा भी हुई थी। पुस्तकालय संघ भी नकली किताबों के प्रति जागरूकता के लिए प्रयासरत है। फिर भी 6 माह से तीन साल तक कैद व 50 हजार से 2 लाख तक के जुर्माना के बाद भी नकली किताबों के धंधे में कोई कमी नहीं आयी है। कुछ एक घटनाओं के छोड़ दिया जाए तो किसी प्रकाशक के पास नकली किताबों को पकडऩे संबंधी आंकड़े नहीं हैं।
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